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महिलाओं और बालिकाओं के नाक कान छेदना: हानिकारक प्रथा, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन

#महिलाओं और बालिकाओं के नाक कान छेदना: हानिकारक प्रथा, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन**
★क्या ग़रीबों व मानसिक रूप से विकलांग लोगो का है धर्म?
@#मानसिक विकलांगता के कारण मनुष्य जाति (पुरोहित, ब्रह्मण), धर्म, पत्थर की मूर्ति, फोटो को पूजना शुरू करते है। जब की आप को अपने हक अधिकारों के लिए काम करना चाहिए। धर्म आपको कभी भी इंसानियत नहीं सिखाता है। यह धर्म आपको डुबो देगा! डुबो देगा! डुबो देगा!!!
(#@जहा शिक्षा का स्तर कमजोर है, वहा कुरीतिया और अन्ध्विस्वासो का भंडार है.)
(#@महिलाओं को चाहिए मुक्ति आन्दोलन)
[Human rights law and practice.
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keevee(n), endeavour security scope backwards security surveillance system. Use ms optical recognized computer’s key board. Identify their a top
Adverse. Used asp..net web based data entry and go-to email software {www.}.]

#स्कूल और कॉलेजों में कुप्रथाओं, अन्धविश्वासो को बढावा देने वाले अध्यापको/अध्यापिकाओं पर कार्यवाही आवश्यक है.
https://pargaiwebeng.in/action-is-necessary-against…/
#देखिये धार्मिक कुरीतिया हमारे समाज को किस तरह प्रभावित करती है.
https://pargaiwebeng.in/see-how-religious-evils-affect…/
#मार्क्स ने मानवता को धर्म के ऊपर रखने के लिए कहा.
(Balwant Singh Pargai Samywadi member of cpiml uttarakhand)
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**देहरादून, उत्तराखंड: – हाल ही में उत्तराखंड के साम्यवादी सदस्य बलवंत सिंह परगाई ने एक सनसनीखेज बयान जारी किया है, जिसमें उन्होंने हिन्दू धर्म में महिलाओं और बालिकाओं के नाक कान छेदन की प्रथा को हानिकारक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
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परगाई के अनुसार, यह प्रथा महिलाओं की मनोवैज्ञानिक विश्लेषण क्षमता को समाप्त कर देती है, उन्हें मंदबुद्धि बना देती है और सोचने-समझने की क्षमता को क्षीण कर देती है।
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परगाई ने यह भी आरोप लगाया कि हिन्दू धर्म में पुरोहित वर्ग (ब्राह्मण) द्वारा विवाह पद्धति के कारण महिलाओं के व्यक्तित्व पर कुठाराघात किया जाता है। पुरोहित विवाह से पहले बालिकाओं और महिलाओं के नाक-कान छेदते हैं, जिसे धर्म कर्म का नाम दिया जाता है और अपने दिनचर्या के लिए शुभ कहा जाता है। छेद वाले जगह पर कील ठोके जाते हैं, जिस कारण महिलाओं को धर्म के नाम से जिंदगी भर रोना-धोना होता है।
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**संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन**
परगाई ने जोर देकर कहा कि यह प्रथा संविधान द्वारा महिलाओं के लिए दिए गए मानवाधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि संविधान के तहत भारत में महिलाएं समान नागरिक हैं, लेकिन धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों के कारण उनके साथ असमान व्यवहार किया जाता है। धर्म के आधार पर भेदभाव कानूनी अपराध है और धर्म मौलिक अधिकारों के क्षेत्र में नहीं आता है।
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परगाई ने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे एक महिला अपने पति की मृत्यु के बाद स्वतंत्रता के साथ अपना जीवन व्यतीत करती है, क्योंकि विवाह के कारण नाक और कानों में ठोके गए कीलों को उखाड़कर फेंक दिया जाता है, जिसे गुरु प्रथा (पुरोहिवाद) के अंतर्गत माना जाता है। इससे तमाम उलझनों और दिक्कतों का निस्तारण हो जाता है।
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**समाजशास्त्रीय अध्ययन**
समाजशास्त्रीय अध्ययनों ने भी यह दिखाया है कि हिन्दू धर्म के किसी प्रकार के सामाजिक मानदंडों तथा समाजीकरण के प्रतिरूप महिलाओं के साथ असमान व्यवहार को बढ़ावा देते हैं। यद्यपि भारत भर में महिलाएं संविधान के तहत समान नागरिक हैं, लेकिन धर्म-आधारित व्यक्तिगत कानूनों के कारण उनके साथ असमान व्यवहार किया जाता है।
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**प्रथा का विरोध**
परगाई ने इस प्रथा का पुरजोर विरोध करते हुए कहा कि यह महिलाओं के सम्मान और गरिमा के खिलाफ है। उन्होंने समाज के सभी वर्गों से इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाने और महिलाओं को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाने की अपील की है।
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**वैज्ञानिक दृष्टिकोण**
परगाई ने इस प्रथा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गलत ठहराया। उन्होंने कहा कि नाक और कान के छेद मस्तिष्क के महत्वपूर्ण केंद्रों को प्रभावित करते हैं, जिससे महिलाओं की मानसिक और शारीरिक क्षमताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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**स्वास्थ्य पर प्रभाव**
विशेषज्ञों का मानना है कि नाक और कान छेदने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। यदि छेदने के दौरान साफ-सफाई का ध्यान न रखा जाए, तो यह संक्रमण पूरे शरीर में फैल सकता है और गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। इसके अलावा, छेदने के दौरान तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचने से चेहरे और सिर में दर्द हो सकता है।
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**मनोवैज्ञानिक प्रभाव**
नाक और कान छेदने से महिलाओं के आत्मविश्वास और आत्मसम्मान पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। कुछ महिलाओं को यह प्रथा अपमानजनक और शोषणकारी लगती है। इसके अलावा, छेदने के बाद निशान बनने से कुछ महिलाओं में हीन भावना पैदा हो सकती है।
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**कानूनी दृष्टिकोण**
भारतीय संविधान महिलाओं को समानता का अधिकार देता है। इस अधिकार के तहत, महिलाओं के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। नाक और कान छेदने की प्रथा महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण है, क्योंकि यह प्रथा केवल महिलाओं पर लागू होती है।
महिलाओं के मानवाधिकारों का हनन:- नाक-कान छेदने की प्रथा, महिलाओं के मानवाधिकारों का स्पष्ट हनन है। यह प्रथा, महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है। इस प्रथा के कारण, महिलाओं को जिंदगी भर दर्द और तकलीफ सहनी पड़ती है।
इसके अलावा, यह प्रथा, महिलाओं को सामाजिक रूप से भी कमजोर करती है। इस प्रथा के कारण, महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा नहीं मिल पाता है और उन्हें पुरुषों के अधीन रहना पड़ता है।
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**समाधान**
इस प्रथा को समाप्त करने के लिए जागरूकता फैलाना जरूरी है। लोगों को इस प्रथा के हानिकारक प्रभावों के बारे में बताना चाहिए। इसके अलावा, सरकार को इस प्रथा को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने चाहिए।
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**निष्कर्ष**
महिलाओं और बालिकाओं के नाक कान छेदना एक हानिकारक प्रथा है, जो महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए।
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**बलवंत सिंह परगाई का संदेश**
“मैं सभी महिलाओं से अपील करता हूं कि वे इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाएं और अपने अधिकारों के लिए लड़ें। मैं समाज के सभी वर्गों से भी अपील करता हूं कि वे महिलाओं का समर्थन करें और उन्हें समान अवसर प्रदान करें।
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**अगले कदम**
बलवंत सिंह परगाई ने घोषणा की है कि वे इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाएंगे और इस प्रथा को समाप्त करने के लिए एक आंदोलन शुरू करेंगे। उन्होंने सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार संगठनों से इस आंदोलन में शामिल होने की अपील की है।
यह खबर निश्चित रूप से समाज में एक बहस छेड़ेगी और महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगी।
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★राज्य द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं व विभागों में न तो किसी धर्म का प्रचार किया जाएगा न ही कोई धर्म मिक शिक्षा दी जाएगी और न ही किसी भी धर्म के आचरण व अनुसरण अनुमति दी जाएगी। ( को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दण्डनीय होगा।*)
★क्या ग़रीबों व मानसिक रूप से विकलांग लोगो का है धर्म?
#धर्म के आधार पर वोट अपराध (sc )
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☆भारत में हिन्दू धर्म को मनु वादियों द्वारा पुरोहितवाद के द्वारा बनाया गया है। और विश्व में राजनीत को मार्क्सवाद और व्लादिमीर लेनिनवाद (Marxism and Vladimir Leninism) के द्वारा।
★”मूर्ख व्यक्ति की समृद्धता से समझदार व्यक्ति का दुर्भाग्य कहीं अधिक अच्छा होता है।” – एपिक्यूरस
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# श्रीकृष्ण कोई योध्या नही थे न कोई भगवान जैसे भगवान विष्णु, शिव, ब्रह्मा आदि आदि जो अभी तक जिंदा है।श्रीकृष्ण केवल युद्ध को देखने वाले व चलाने वाले मात्र आप ओर हम जैसे आदमी थे पता नहीं क्यो श्री कृष्ण को भगवान मान लिया। भगवान तो श्री अर्जुन को मनाना चाहिए था।सायद कृष्ण को भगवान इसलिए माना गया होगा काला होने के कारण।समाज में काले आदमी को प्राचीन काल से ही सम्मान दिया जाता है क्योंकि हिन्दुओ की सबसे मूर्तियों में काला रंग चढ़ाया जाता है। काल सबसे बड़ा हिंदुयों का भगवान है लेकिन काला है।बाबा रामदेव काल नही है लेकिन हिन्दू लोग रामदेव बाबा को भगवान मानने लगेंगे? जो कि काला नही।
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#ब्राहमण धर्म के लोगों ने प्रतिक्रांति की गोदत्त की हत्या की बौद्धों के विहारों को तोड़ा उनके स्थानों में मन्दिर का निर्माण किया। बौद्धों का नर संघार किया। ब्राहमण धर्म के लोगों ने समाज का वर्गीकरण कर सामाजिक वैमनस्य को और अधिक प्रखर किया। बौद्ध भी भिक्षु ,सन्त समाज के थे।
और समाज के कुछ लोगों को शु ट शुद्र और अति शुद्ध नाम दिया और समाज के लोगों को शुद्र और अति शुद्ध नाम दिया और उनको हिंदुओं के मंदिरो में प्रवेश वर्जित कर दिया। साथ ही साथ महिलाओ का भी वर्गीकरण शुरू कर दिया उन्हें असामाजिक तत्व मानकर समाज से बाहर निकल दिया समाज में महिलाओ के साथ भेदभाव शुरू कर दिया साथ ही साथ अनेकों कुप्रथाओ व अंधविस्वासो के अंधकार में धकेल दिया। पूर्ब बौद्ध काल में मंदिरों का कोई concept नही है। यह बात हमे इतिहास बताता है।

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*जागरूकता की आवश्यकता:- पुरोहितवाद के कारण महिलाओं के व्यक्तित्व पर होने वाले कुठाराघात के बारे में जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है। लोगों को इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और इसे समाप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना चाहिए और किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।
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*निष्कर्ष:- पुरोहितवाद, एक जटिल समस्या है जो हिन्दू धर्म में महिलाओं के व्यक्तित्व पर गंभीर कुठाराघात करती है। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए, जागरूकता फैलाना और कानूनी कार्रवाई करना बहुत जरूरी है। महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक होना चाहिए और किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
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#सामाजिक न्याय की बात करते हुए हमें नीत निर्देशक सिद्धान्तों की बात भी नहीं भूलनी चाहिए। धार्मिक समुदायो को मान्यता न देकर इस समस्या का समाधान आसानी से किया जा सकता है। माना जाता है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य धर्म को निजी मामला के रुप में स्वीकार करते है। संविधान एक जीवंत दस्तावेज है।लोकतंत्र का मतलब है साथर्क भागीदारी धर्मनिरपेक्षता, पंथनिरपक्षता या सेक्युलरवाद धार्मिक संस्थानों व धार्मिक उच्चपदधारियों से सरकारी संस्थानों व राज्य का प्रतिनिधित्व करने हेतु शासनादेशित लोगों के पृथक्करण का सिद्धान्त है। यह एक आधुनिक राजनैतिक एवं संविधानी सिद्धान्त है।
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#स्कूल और कॉलेजों में कुप्रथाओं, अन्धविश्वासो को बढावा देने वाले अध्यापको/अध्यापिकाओं पर कार्यवाही आवश्यक है.
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